क्या राजनीति से संन्यास लेंगे प्रशांत किशोर? जानें हार के 5 प्रमुख कारण

पटना
बिहार विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर की नई पार्टी जनसुराज पार्टी (जेएसपी) की उम्मीदें धराशायी हो गईं। शुरुआती रुझानों में न केवल उन्हें कोई सीट नहीं मिली, बल्कि उनके सबसे मजबूत उम्मीदवार भी किसी मुकाबले में दिखाई नहीं दिए। चुनावी मैदान में किशोर न तो एनडीए को चुनौती दे पाए, न ही महागठबंधन को प्रभावित कर पाए -मतलब कि वे उम्मीद के मुताबिक वोटकटवा भी नहीं बन सके। अब सवाल यह उठता है कि जो उन्होंने जोर-शोर से कहा था- अगर जनता दल यूनाइटेड 25 से अधिक सीटें जीत गया तो मैं संन्यास ले लूंगा- क्या किशोर उस वादे पर कायम रहेंगे?
बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों ने प्रशांत किशोर और उनकी नई राजनीतिक मुहिम जनसुराज पार्टी (जेएसपी) के लिए उम्मीदों के बुलंद पंखों को तोड़ दिया है। शुरुआती रुझानों में पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी, जबकि एग्जिट पोल्स ने 0-5 सीटों का अनुमान लगाया था। खास बात यह रही कि पार्टी के सबसे मजबूत उम्मीदवार भी किसी मुकाबले में नजर नहीं आए।
जनसुराज पार्टी के जमावड़े और सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ ने शुरुआती तौर पर यह भरोसा दिया था कि किशोर किसी न किसी रूप में बिहार की राजनीति में सेंध लगाने में सक्षम हैं। लेकिन चुनाव परिणाम यह साबित करते हैं कि जमीन पर उनकी पकड़ लगभग शून्य रही। अब सवाल उठता है कि प्रशांत किशोर अपने चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादों पर खरे उतरेंगे या नहीं।
संन्यास का वादा और विफलता
चुनाव प्रचार के दौरान किशोर ने नेशनल टीवी पर दावा किया था कि अगर जनता दल यूनाइटेड 25 से अधिक सीटें जीतता है तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे। यह वादा इतनी आत्मविश्वास के साथ किया गया था कि उन्होंने पत्रकार से कहा कि यह रिकॉर्डिंग रख लें। अब परिणाम सामने हैं और किशोर के वादे के पालन पर राजनीतिक दबाव बढ़ गया है।
हार के पीछे पांच प्रमुख कारण:-
1 तेजस्वी यादव को चुनौती देने से पीछे हटना
जेएसपी की हार का सबसे बड़ा कारण प्रशांत किशोर का तेजस्वी यादव को चुनौती न देना रहा। शुरुआती घोषणा में उन्होंने राघोपुर से मैदान में उतरकर तेजस्वी की ‘परिवारवाद’ और वादों की पोल खोलने की बात कही थी। लेकिन आखिरकार यह मुकाबला नहीं हुआ, जिससे उनका वैकल्पिक नेता बनने का मौका गंवा गया।
2- मोदी और शाह के खिलाफ खुलकर नहीं बोले
किशोर ने केंद्रीय नेताओं नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ सीधे तौर पर हमला नहीं किया। विपक्ष के कई नेता चुनावी मुद्दों पर उनके विरोध में जहर उगल रहे थे, लेकिन किशोर इस लहर का हिस्सा नहीं बने। जनता ने यह महसूस किया कि जेएसपी बीजेपी की ‘बी टीम’ जैसी भूमिका निभा रही है।
3 – शराबबंदी के खिलाफ विवादास्पद रुख
किशोर ने शराबबंदी समाप्त करने की घोषणा कर महिलाओं और परिवारों की नाराजगी झेली। बिहार में महिलाओं के लिए यह नीति सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता का प्रतीक मानी जाती है। किशोर का यह कदम युवाओं को लुभाने की कोशिश में महिलाओं के विरोध को जन्म देने वाला साबित हुआ।
4- जाति और धर्म के आधार पर टिकट वितरण
किशोर ने चुनाव से पहले घोषणा की थी कि उनकी पार्टी जाति और धर्म से ऊपर उठकर राजनीति करेगी। लेकिन टिकट वितरण में वही पैटर्न अपनाया गया, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हुआ।
5- NDA नेताओं के खिलाफ माहौल नहीं बना पाए
उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और मंत्री अशोक चौधरी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बावजूद किशोर ने इसे केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस तक सीमित रखा। जनता तक इस मुद्दे का प्रभाव नहीं पहुंच पाया।



