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ट्रम्प नहीं चाहता है रूस से सस्ता कच्चा तेल मंगाए भारत, 500% टैरिफ लगाने की तैयारी, सीनेट में आएगा नया बिल

नई दिल्ली
 अमेरिका ने रूस के साथ व्यापार करने वाले मुल्कों पर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। रूस की यूक्रेन के खिलाफ जंग के तीन साल बाद भी कुछ देश, खासकर भारत और चीन, रूस से तेल खरीद रहे हैं।

इसके बाद अब अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने एक बिल को पेश किया है। इसमें रूस से व्यापार करने वाले मुल्कों पर 500 फीसदी टैरिफ लगाने की बात कही गई है।

इस बिल को खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन हासिल है। इस खबर ने भारत जैसे मुल्कों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है, जो रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है। आइए जानते हैं, ये बिल क्या है और भारत पर इसका क्या असर पड़ सकता है।

रिपब्लिकन सीनेटर लिंडेस ग्राहम ने एबीसी न्यूज के साथ बातचीत में ये जानकारी दी है. 

एबीसी न्यूज के अनुसार ग्राहम ने कहा, "यदि आप रूस से प्रोडक्ट खरीद रहे हैं, और आप यूक्रेन की मदद नहीं कर रहे हैं, तो आपके द्वारा अमेरिका में आने वाले उत्पादों पर 500% टैरिफ लगेगा. भारत और चीन पुतिन के तेल का 70% खरीदते हैं. वे रूस के वॉर सिस्टम को चालू रखते हैं."

माना जा रहा है कि इस विधेयक को अगस्त में पेश किया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो इसे रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के अमेरिकी प्रयास में बड़ा स्टेप माना जाएगा.

अगर यह विधेयक पारित हो जाता है तो इससे भारत और चीन पर गंभीर असर पड़ सकता है. क्योंकि ये दोनों ही देश छूट वाले रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े खरीदार हैं. इस अमेरिकी कदम से भारत के लिए फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और आईटी सेवाओं जैसे निर्यात पर टैरिफ का भी जोखिम है.

भारत रूसी तेल का एक प्रमुख खरीदार है. यूक्रेन पर आक्रमण के तीसरे वर्ष में भारत ने 49 बिलियन यूरो का कच्चा तेल आयात किया. परंपरागत रूप से भारत अपना तेल मध्य पूर्व से प्राप्त करता है, लेकिन फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के तुरंत बाद भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में तेल आयात करना शुरू कर दिया.

अमेरिका द्वारा इस बिल की चर्चा तब हो रही है जब भारत-अमेरिका व्यापार समझौता (Indo-US Trade deal) होने जा रहा है. अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने मंगलवार को कहा कि व्यापार समझौता "बहुत करीब" है. जबकि भारतीय प्रतिनिधिमंडल वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों के साथ लगातार चर्चा कर रहे हैं.  इंडिया टुडे को सूत्रों ने बताया कि दोनों देशों के बीच कृषि संबंधी प्रमुख मांगों को लेकर ट्रेड डील वार्ता में गतिरोध आ गया था. 

ग्राहम और डेमोक्रेटिक सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल द्वारा सह-प्रायोजित प्रस्तावित विधेयक को कथित तौर पर 84 दूसरे सीनेटर भी सपोर्ट कर रहे हैं. 

आपके बिल को आगे बढ़ाने का समय आ गया है

इस बिल का उद्देश्य दुनिया के देशों पर रूसी तेल की खरीद को रोकने, "मॉस्को की युद्ध अर्थव्यवस्था" को कमजोर करने और रूस को यूक्रेन के साथ शांति वार्ता करने के लिए दबाव डालना है.

ग्राहम ने एबीसी न्यूज को बताया कि जब वो कल ट्रंप के साथ गोल्फ खेल रहे थे तो उन्होंने इस बिल को हरी झंडी दे दी. लिंडसे ग्राहम ने कहा, "कल पहली बार उन्होंने कहा- अब आपके बिल को आगे बढ़ाने का समय आ गया है, तब मैं उनके साथ गोल्फ़ खेल रहा था."

मूल रूप से इस बिल को मार्च में ही प्रस्तावित किया गया था. यानी कि इस बिल को तब ही आना था. लेकिन व्हाइट हाउस द्वारा विरोध के संकेत दिए जाने के बाद ये बिल अटक गया. 

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस बिल पर रिपोर्ट जारी कर कहा था कि तब ट्रंप ने इस बिल की भाषा में बदलाव करने के लिए चुपचाप दबाव डाला था. इसमें 'करेगा' (Shall) की जगह 'हो सकता है' (May) का इस्तेमाल करने को कहा गया था. 

बाद में ग्राहम ने कथित तौर पर यूक्रेन का समर्थन करने वाले देशों के लिए एक अलग प्रस्ताव रखा, ताकि संभवतः अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों के बीच चिंता कम हो सके. ग्राहम ने कहा, "हम राष्ट्रपति ट्रम्प को एक उपाय देने जा रहा है."

अगर यह विधेयक कानून बन जाता है, तो इससे चीन और भारत दोनों के साथ अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में व्यापक बदलाव आ सकता है. चूंकि अमेरिका भारत का मुख्य निर्यात बाजार है, इसलिए यह नीति बड़े पैमाने पर कूटनीतिक तनावों को भी जन्म दे सकती है.

अमेरिका द्वारा भारत पर 500 फीसदी टैरिफ लगाने से अमेरिकी बाजार में जाने वाले भारत के उत्पादों के दाम बेतहाशा बढ़ जाएंगे. इससे वहां भारतीय प्रोडक्ट की बिक्री कम हो सकती है. इस कदम का फर्मास्यूटिक्ल और ऑटोमोबिल इंडस्ट्री पर व्यापक असर पड़ सकता है.

राहत लेकर आया है रूस का तेल

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस ने भारत को रियायती दरों पर कच्चा तेल बेचा. रूस से कच्चे तेल के आयात ने भारत को आर्थिक, रणनीतिक और एनर्जी सिक्योरिटी के लिहाज से कई लाभ पहुंचाए हैं. सस्ते तेल ने आयात बिल को कम किया, रिफाइंड उत्पादों के निर्यात को बढ़ाया और वैश्विक तेल कीमतों को नियंत्रित करने में मदद की. रूस के तेल की वजह से ही भारत मध्य पूर्व संकट, यूक्रेन वॉर के समय अपने देश कच्चे तेल की कीमतों को स्थिर रख सका. 

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से 24 फरवरी 2022 से 2 मार्च 2025 तक भारत ने रूस से लगभग 112.5 अरब यूरो (लगभग 118 अरब डॉलर, 1 यूरो = 1.05 डॉलर के हिसाब से) मूल्य का कच्चा तेल आयात किया है. यह जानकारी सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की एक रिपोर्ट के आधार पर है. रूस से कच्चे तेल की हिस्सेदारी युद्ध से पहले 1% से भी कम थी जो 2023-24 में बढ़कर 35-45% हो गई. 

रूस का तेल भारत को सऊदी अरब और इराक जैसे देशों की तुलना में सस्ता मिला. इससे देश का आयात बिल कम हो गया. रूस से कच्चे तेल के आयात से भारत को 25 अरब डॉलर तक की आर्थिक बचत हुई. 

CREA और अन्य स्रोतों के अनुसार भारत ने 2022-2025 के बीच रूसी तेल आयात पर 10.5 से 25 अरब डॉलर तक की बचत की. 

 

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