मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश में सहकारिता से नहीं उद्धार, मनमर्जी करने को तैयार सरकार।

माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी “सहकार से समृद्धि” के मंत्र के साथ सहकारिता की जिम्मेदारी अपने सबसे विश्वसनीय साथी अमित शाह जी को सौंपी है। ताकि जन भागीदारी से सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट काम हो सके। अमूल जैसी सहकारी समिति इसका एक उदाहरण है।

इसके विपरीत मध्यप्रदेश सरकार सहकारिता अधिनियम में बदलाव कर चुनावों को आगे बढ़ाने , प्रशासक की अनिश्चितकाल के लिए नियुक्ति और निजी भागीदारी की धारा जोड़कर सहकारिता की मूल भावना पर चोट करना चाहती ही।।मध्यप्रदेश में सहकारी समितियां लगभग 4500 है। इन समितियों में संचालन मंडल का चुनाव हर 5 साल में करवाना होता है, चुनाव न होने की सूरत में 6 महीने के लिए विभाग के ही किसी अधिकारी को प्रशासक नियुक्त किया जाता है जिसका कार्यकाल 6 महीनों के लिए और बढ़ाया जा सकता। परन्तु सरकार द्वारा 2018 से ही संचालन मंडल के चुनाव न करवाकर प्रशासक के द्वारा ही इन समितियों पर नियंत्रण रखा जा रहा है। कोर्ट में भी चुनाव कराने के लिए प्रकरण दर्ज हुए चुनाव कराने के लिए आदेश भी हुए, सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण कार्यालय से कार्यक्रम भी तय हुए पर चुनाव नहीं हो सके।

मध्यप्रदेश में सहकारी समितियों का सीधे तौर पर किसान, वनोपज और जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों में अच्छा वर्चस्व है। परन्तु चुनाव न होने से इनका संचालन मंडल नहीं बन पा रहा।, जिसको प्रशासक 2018 से अपने अनुरूप संचालित कर रहे है। जिससे सहकारिता की मूल भावना की अनदेखी हो रही है। सदस्य ही चुनकर संचालन मंडल बनाते है जिन्हें अपने हितों की पूर्ण जानकारी होती है और वो ही सही तरीके से निर्णय लेकर कार्य कर सकते हैं।

अब मध्यप्रदेश सरकार “राज्य सरकार सहकारिता अधिनियम” में संशोधन करने जा रही है जिससे वो प्रशासक को अनिश्चितकाल तक बैठा कर चुनावों को अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार करवा सके।

विभागीय अधिकारी के अनुसार धारा 53 में संशोधन करके प्रावधान किया जा सकता है कि सरकार चुनाव आगे बढ़ादे।

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