बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव के घर हारने का कारण: लालू कुनबे का गृहकलह महंगा पड़ा

पटना
बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव की हालत बता रही है कि घर का झगड़ा हमेशा ही भारी पड़ता है. ताजातरीन उदाहरण तो तेजस्वी यादव बनाम तेज प्रताप यादव की लड़ाई ही है. बाद में अखिलेश यादव भले संभल गए हों, लेकिन 2017 में समाजवादी पार्टी के सत्ता गंवाने के पीछे एक बड़ी वजह तो घर का झगड़ा ही था. तब शिवपाल सिंह यादव को किनारे लगाकर अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी पर तो काबिज हो गए, लेकिन सत्ता से तो हाथ धोना ही पड़ा था. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव तो जल्दी ही संभल भी गए, लेकिन बिहार में तेजस्वी यादव की राजनीति में महत्वपूर्ण चीजें बहुत दूर जा चुकी हैं. तेजस्वी यादव के लिए ये बिहार चुनाव बहुत बड़ा मौका था, लेकिन सावधानी हटी और दुर्घटना घटी वाला हाल हो गया.
तेज प्रताप को तो महुआ से खुद भी कोई उम्मीद नहीं रही होगी, लेकिन लालू-राबड़ी के गढ़ राघोपुर में तेजस्वी यादव का खराब प्रदर्शन, लालू यादव के परिवार के लिए इससे बड़ी फजीहत भला क्या होगी? दानापुर में रीतलाल यादव का काउंटिंग में पिछड़ जाना कोई खास मायने नहीं रखता, लेकिन लालू यादव के करिश्मे पर सवाल जरूर उठाता है – लालू यादव ने एक ही रोड शो किया था, वो भी जाया हुआ.
तेज प्रताप यादव के पास गंवाने के लिए कुछ भी नहीं था. न परिवार का साथ, न पिता की विरासत, न पार्टी का सिंबल. तेजस्वी यादव ने बड़े भाई तेज प्रताप यादव को लगता है काफी हल्के में ले लिया, लेकिन वो बहुत ही ज्यादा भारी पड़े हैं. राघोपुर गवाह है.
तेजस्वी यादव तो एक ही झटके में बहुत बड़ी थाती गंवा चुके हैं, जिसमें डैमेज कंट्रोल का हाल फिलहाल तो कोई भी ऑप्शन भी नजर नहीं आ रहा है – तेजस्वी यादव को तो राघोपुर में एकतरफा जीत मिलनी चाहिए थी, लेकिन जो हुआ उसकी तो उम्मीद कतई नहीं होगी.
1. सामाजिक न्याय वाले लालू यादव का 'फैमिली जस्टिस' नामंजूर
तेज प्रताप यादव की निजी तस्वीरें कैसे और क्यों लीक हुईं, अपनी तरफ से वो खुद बता चुके थे. तेज प्रताप यादव का दावा था कि उनका अकाउंट हैक हो गया था, और तस्वीरें लीक हो गईं. लेकिन, तस्वीरें फर्जी हैं, ऐसा नहीं बताया गया. हो सकता है, तब तेज प्रताप ऐसा बयान दिए होते, तो आगे की मुसीबत से बच सकते थे.
लालू यादव ने फौरी एक्शन लेते हुए तेज प्रताप यादव को तत्काल प्रभाव से हर तरीके से बेदखल कर दिया. राजनीतिक विरासत से तो पहले ही बेदखल कर चुके थे, पार्टी आरजेडी के साथ साथ परिवार से भी बेदखल कर दिया. तेजस्वी यादव पार्टी के नेता तो पहले से ही थे, परिवार में भी सर्वेसर्वा हो गए.
सवाल ये है कि लालू यादव ने ऐसा क्यों किया? क्या नैतिकता की दुहाई देने के लिए? और, क्या ऐसा ही तेजस्वी यादव के मामले में हुआ तो भी लालू यादव का फैसला वही होता या अलग?
2017 में भ्रष्टाचार के मामले को लेकर नीतीश कुमार चाहते थे कि तेजस्वी यादव इस्तीफा दें, लेकिन लालू यादव ने बात नहीं मानी. तब तेजस्वी यादव बिहार के डिप्टी सीएम थे. फिर नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से ही इस्तीफा दे दिया, और तेजस्वी यादव विधायक बनकर रह गए.
अब अगर लालू यादव ने तेज प्रताप के मामले में नैतिकता की दुहाई देने की कोशिश की है, तो चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बिहार के लोगों ने उसे नामंजूर कर दिया है.
2. तेज प्रताप के मामले में कन्फ्यूजन बना रहा
क्या तेज प्रताप यादव पूरी तरह परिवार और पार्टी से बेदखल कर दिए गए थे? लालू यादव के बयान और उस पर तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया को देखें तो ऐसा ही लगता है. लेकिन, क्या ऐसा व्यावहारिक तौर पर भी हुआ था? तेजस्वी यादव भले ही सूत्रों के लिए कोई और शब्द इस्तेमाल करते रहें, लेकिन आस पास के लोग मानने को तैयार नहीं थे.
सूत्रों के हवाले से मालूम हो रहा था कि तेज प्रताप यादव के प्रति परिवार और पार्टी दोनों जगह काफी सहानुभूति बनी हुई थी. आरजेडी के कई नेता भी किसी न किसी बहाने संपर्क में थे, और वैसे ही घर परिवार भी – और चुनाव प्रचार के दौरान राबड़ी देवी और मीसा भारती के बयानों से तो ये साबित भी हो गया.
लालू भले खामोश रहे, लेकिन राबड़ी देवी ने तो खुलकर आशीर्वाद दिया था, और मीसा भारती की भी शुभकामनाएं मिली थीं. मां राबड़ी देवी और बहन मीसा भारती दोनों ने सरेआम कैमरे पर साफ साफ कहा कि खून का रिश्ता है, मन से तेज प्रताप को कैसे निकाला जा सकता है?
ये सब इतना कन्फ्यूजन होने देने के लिए तो काफी ही था कि सब कुछ दिखावा है. लालू यादव ने जो भी कदम उठाया है, वो चुनाव के चलते है. चुनाव बाद वो फैसला वापस भी हो सकता है. ये तो हर पार्टी में होता रहा है, आरजेडी में तो बेटे का मामला है.
सभी बहनों का राखी न मिलना, तेज प्रताप के दुखी होने के लिए काफी था. तेज प्रताप ने सोशल मीडिया पर नाम देकर बता भी दिया कि कौन कौन उनके साथ नहीं है. महुआ में कोई भी सहानुभूति तेज प्रताप के काम नहीं आई – लेकिन, राघोपुर में तो लगता है 'खेला' हो गया.
3. तेज प्रताप और तेजस्वी एक-दूसरे के दुश्मन नजर आए
तेज प्रताप यादव बार बार आगाह कर रहे थे, अगर महुआ पर किसी की नजर पड़ी तो राघोपुर में उसका रिएक्शन होकर रहेगा. जब तेजस्वी यादव के दो जगह से चुनाव लड़ने को लेकर सवाल पूछे गए, तो तेज प्रताप ने साफ बोल दिया कि वो भी राघोपुर से चुनाव लड़ जाएंगे.
ऐसी सभी बातों को नजरअंदाज करते हुए तेजस्वी यादव महुआ पहुंचे. आरजेडी उम्मीदवार के पक्ष में वोट मांगे, और तेज प्रताप पर कटाक्ष किया. क्रिया की प्रतिक्रिया में तेज प्रताप यादव ने राघोपुर में दो हेलीकॉप्टर उतारने की बात कही थी.
बाढ़ के दौरान नाव से राहत बांटने गए तेज प्रताप यादव ने तो पहले ही बहुत कुछ डैमेज कर दिया था. राबड़ी देवी से तेजस्वी यादव के अपने विधानसभा क्षेत्र से गायब रहने की लोगों की शिकायत का मतलब भी तो यही था.
तेजस्वी यादव ने महुआ से भी तेज प्रताप को बेदखल करने के चक्कर में राघोपुर में डेंट लगा लिया.
4. घर के दुश्मनों ने भी मौके का फायदा उठाया?
चुनाव के आखिरी दौर में तेज प्रताप यादव के एनडीए की तरफ झुकाव के चर्चे हो रहे थे. तेज प्रताप ने भी बोल दिया था कि शर्तों के साथ वो किसी को भी सपोर्ट कर सकते हैं – और तेज प्रताप यादव को मिली Y+ कैटेगरी की सिक्योरिटी भी तो ऐसे ही इशारे करती है. ये कोई पहली बार हुआ हो, ऐसा तो नहीं है.
पुत्र मोह देर से ही सही, कभी न कभी भारी पड़ता ही है. और सेलेक्टिव पुत्र मोह, वो तो ज्यादा ही भारी पड़ता है. तेज प्रताप यादव के मामले में ऐसा ही हुआ है.
जो कुछ हुआ है, कई सवाल खड़े करता है. क्या ये लालू यादव की राजनीतिक चूक है? क्या ये तेजस्वी यादव की राजनीतिक चूक है? क्या ये तेजस्वी यादव और लालू यादव की मिलीजुली राजनीतिक भूल है? क्या ये सिर्फ घर के झगड़े का नतीजा है, और सारे किरदार जिम्मेदार हैं?



