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जम्मू कश्मीर के हजरतबल दरगाह में हुए राष्ट्रीय धरोहर “अशोक चिन्ह” का अपमान, प्रश्न खड़ा करता है कि धर्म विशेष के अराजक तत्वों के लिए संविधान बड़ा या धर्म?

जम्मू कश्मीर में भारत सरकार द्वारा करोड़ो की लागत से हजरतबल दरगाह को पुनर्निमाण कराया गया। जिसका ३ सितंबर को उद्घाटन हुआ परंतु पट्टिका में लगे अशोक चिन्ह पर विवाद हो गया। राष्ट्रीय चिन्ह “अशोक स्तम्भ” को कुछ कट्टरपंथियों ने पत्थर से तोड़ दिया।

राष्ट्रीय धरोहरों का अपमान करके धर्म को,संविधान से ऊपर दिखाने की मजहबी सोच, क्या जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद आई नई तरक्की को रोकने और कश्मीरी पंडितों के साथ हुए कृत्य के समय पर, वापिस जाने की एक कोशिश मात्र तो नहीं है ? यह सोच और घातक तब बन जाती है जब सत्ता में बैठी पार्टियां भी उनके इस दूषित कृत्य को दबे मन से समर्थन करने लगती है। नेशनल कांग्रेस के नेता और वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला द्वारा अशोक चिन्ह के उपयोग पर उठाए गए सवाल इसी का उदाहरण हो सकते है। संविधान में ऐसा कही नहीं लिखा है कि किसी धार्मिक स्थान पर राष्ट्रीय चिन्ह का उपयोग नहीं किया जा सकता। जबकि दरगाह के पुनर्निमाण में तो भारतीय जनता के टैक्स का पैसा उपयोग में लाया गया हो। वक्फ बोर्ड भारत सरकार के अधीन है न कि किसी धार्मिक संस्था के।

कांग्रेस और नेशनल कांग्रेस की गठबंधन सरकार जम्मू कश्मीर में है , जिस पर बीजेपी ने कांग्रेस को देश से माफी मांगने या नेशनल कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने की बात कही है।

भारतीय जनता पार्टी के साथ अन्य NDA के नेताओं ने कड़े शब्दों में इसका विरोध किया है ,और इस कृत्य में शामिल अराजक तत्वों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है । अभी तक 26 लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ हो रही है, पर प्रश्न उठता है कि इनकी इस सोच को बल कहा से मिल रहा है ,जिस पर कानूनी प्रहार होना चाहिए। जिससे उनके जहन में भी धर्म से बड़ा संविधान की सोच घर कर जाए।

बिहार की गौरवशाली विरासत से सम्राट अशोक का नाम जुड़ा है , बिहार में चुनावों के कारण भी ये मुद्दा राजनीति में गूंज रहा है। अशोक चिन्ह के अपमान को  राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने एक प्रतीक की बजाए इसे बिहार की आत्मा और भारत की पहचान का अपमान कहा है। कांग्रेस नेतृत्व द्वारा अभी तक इस आर किसी तरह का कोई विचार प्रकट नहीं किया गया है।

 

 

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