
चंडीगढ़
पंजाब में एक दिन में पराली जलाने के सबसे ज्यादा 147 मामले दर्ज किए गए, जिससे 15 सितंबर से अब तक ऐसी घटनाओं की कुल संख्या 890 हो गई है। सरकारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पी.पी.सी.बी.) के आंकड़ों के अनुसार, तरनतारन और अमृतसर जिलों में पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गईं। पी.पी.सी.बी. के अनुसार, कई किसान पराली जलाने से रोकने की राज्य सरकार की अपील की लगातार अनदेखी कर रहे हैं।
20 अक्टूबर से राज्य में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या बढ़कर 537 हो गई है, जबकि 20 अक्टूबर को यह आंकड़ा 353 था। आंकड़ों के अनुसार, तरनतारन में पराली जलाने की सबसे ज्यादा 249 घटनाएं हुई हैं। इसके बाद अमृतसर (169), फिरोजपुर (87), संगरूर (79), पटियाला (46), गुरदासपुर (41), बठिंडा (38) और कपूरथला (35) में पराली जलाने की घटनाएं हुईं।
पठानकोट और रूपनगर जिलों में अब तक पराली जलाने की कोई घटना सामने नहीं आई है। एस.बी.एस. नगर और होशियारपुर में तीन-तीन, मलेरकोटला में चार और लुधियाना में 9 पराली जलाने की घटनाएं सामने आईं। दिल्ली-एन.सी.आर. में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं को हमेशा जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसका कारण यह है कि अक्टूबर-नवंबर में धान की कटाई के बाद, रबी की फसल- गेहूं- की बुवाई के लिए बहुत कम समय बचता है। इसलिए, कुछ किसान खेतों में बचे अवशेषों को जल्दी से हटाने के लिए अपने खेतों में आग लगा देते हैं।
पी.पी.सी.बी. के आंकड़ों के अनुसार, इस साल पंजाब में धान की खेती का कुल रकबा 31.72 लाख हेक्टेयर है और 26 अक्टूबर तक इसमें से 59.82 प्रतिशत रकबे में कटाई हो चुकी है। पी.पी.सी.बी. के अनुसार, अब तक 386 मामलों में पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में 19.80 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिसमें से 13.40 लाख रुपये वसूल किए जा चुके हैं। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि इस अवधि के दौरान, भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 223 (लोक सेवक के आदेश की अवज्ञा) के तहत खेतों में आग लगाने की घटनाओं के खिलाफ 302 एफ.आई.आर. दर्ज की गईं।



