ममता बनर्जी ने INDIA गठबंधन में फिर दिखाया दम, वर्चस्व की जंग तेज

नई दिल्ली
INDIA ब्लॉक पूरी तरह तो नहीं, लेकिन काफी हद तक संसद में एकजुट नजर आ सकता है. कांग्रेस नेतृत्व की कोशिशों से तो ऐसा ही लग रहा है. 19 जुलाई को इंडिया ब्लॉक की ऑनलाइन मीटिंग होने जा रही है. मुद्दा तो स्वाभाविक है,
ऑपरेशन सिंदूर से लेकर बिहार में चल रहा SIR तक सब कुछ होगा, लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण मीटिंग में ममता बनर्जी भागीदारी मानी जा रही है.
कांग्रेस सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि विपक्षी गठबंधन के करीब करीब सभी प्रमुख नेता मीटिंग में शामिल होने रहे हैं – और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की तरफ से भी ऐसे ही सकारात्मक संकेत मिले हैं.
2019 के आम चुनाव के समय से ही ममता बनर्जी अपनी अहमियत का एहसास कराती रही हैं. विशेष रूप से कांग्रेस को, जब मामला पश्चिम बंगाल चुनाव से जुड़ा हो.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद तो ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक की मौजूदा लीडरशिप पर भी सवाल उठाने लगीं, और कहने लगीं कि वो विपक्ष के नेतृत्व के लिए तैयार हैं, लेकिन कोलकाता में रहकर ही. विपक्ष के कुछ नेताओं का समर्थन भी ममता बनर्जी को मिल गया.
सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व कांग्रेस के पास है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो लोकसभा में विपक्ष के नेता भी हैं. राज्यसभा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मोर्चा संभाले हुए हैं.
मॉनसून सत्र में साथ आया इंडिया ब्लॉक
दिल्ली चुनाव के दौरान ही ये चर्चा होने लगी थी कि नतीजे आने के बाद इंडिया ब्लॉक का अस्तित्व खत्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ – और, मॉनसून सत्र से पहले विपक्षी गठबंधन के नेता एक बार फिर उस मीटिंग में हिस्सा लेने जा रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को घेरने की रणनीति तैयार की जाने वाली है.
पहले ये मीटिंग दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर कराने की कोशिश हुई, लेकिन जब कुछ नेताओं ने कम समय में दिल्ली पहुंचने में असमर्थता जताई तो फॉर्मेट बदलना पड़ा. विपक्ष के ज्यादा से ज्यादा नेताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अब ये मीटिंग ऑनलाइन होने जा रही है.
कांग्रेस सूत्रों की मानें, तो विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक के लगभग सभी नेताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक में शामिल होने की पुष्टि की है – और उनमें तृणमूल कांग्रेस भी है.
शिवसेना-यूबीटी प्रवक्ता संजय राउत ने तो बताया है कि उद्धव ठाकरे दिल्ली भी जा सकते हैं, क्योंकि केसी वेणुगोपाल का फोन आया था. लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के वीडियो कांफ्रेंसिंग से ही जुड़ने की बात कही गई है.
तृणमूल कांग्रेस की तरफ से भी ममता बनर्जी या उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी ऑनलाइन मीटिंग में शामिल होने की संभावना जताई गई है.
ये साफ नहीं है कि अरविंद केजरीवाल के आम आदमी पार्टी शामिल होगी या नहीं. बीते घटनाक्रमों के हिसाब से देखें तो ऐसी कोई संभावना बनती नहीं है. और, शरद पवार की तरफ से भी दूरी बनाई जा सकती है.
असल में ऑपरेशन सिंदूर पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की कांग्रेस की मांग का शरद पवार ने विरोध किया था. विशेष सत्र को लेकर पहले तो समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने भी हाथ खींच लिये थे, लेकिन बाद में 16 राजनीतिक दलों की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गये संयुक्त पत्र में शामिल हो गये थे. लेकिन शरद पवार और अरविंद केजरीवाल की पार्टियों ने डिमांड वाले पत्र से दूरी बना ली थी.
ममता बनर्जी का शामिल होना अहम क्यों
खास बात ये है कि कांग्रेस से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक सभी को अपनी हैसियत अच्छी तरह मालूम है. ये भी पता है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ पाता, लेकिन ईगो भी तो कुछ होता है.
किसी को विचारधारा का गुरूर है, तो किसी को क्षेत्रीय राजनीति में अपने दबदबे का. कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने अखिल भारतीय नेटवर्क की बदौलत क्षेत्रीय दलों पर गुर्राते हैं, तो क्षेत्रीय दलों के ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे नेता अपने इलाके में धौंस दिखाने लगते हैं. जब केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी से टकराने की बात आती है तो मजबूरी में सब एक हो जाते हैं, नहीं तो पूरे वक्त आपस में झगड़ते रहते हैं.
साझा मुद्दों पर भी अलग अलग पसंद और नापसंदगी है. राहुल गांधी को अडानी का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण लगता है, तो ममता बनर्जी आंख दिखाने लगती हैं. ममता बनर्जी की अहमियत ऐसी है कि 2019 के चुनाव नतीजे आने के बाद जब लोकसभा स्पीकर के चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित कर दिया तो ममता बनर्जी नाराज हो गईं. लेकिन, फिर राहुल गांधी के फोन करके मनाने पर मान भी गईं – तब से लेकर अभी तक हर मुद्दे पर ममता बनर्जी तेवर दिखा ही देती हैं.
INDIA ब्लॉक का ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो ममता बनर्जी का इंडिया ब्लॉक की मीटिंग में शामिल होना, संसद की कार्यवाही के दौरान भी पूरे विपक्ष, खासकर कांग्रेस, के साथ बने रहने की कोई गारंटी नहीं है.