
चंडीगढ़
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भूमि विस्थापितों से बढ़ी हुई दरों पर प्लॉट की कीमत वसूलने के मामले में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी सार्वजनिक प्राधिकरण अपनी ही लापरवाही और प्रशासनिक देरी का लाभ नहीं उठा सकता। अदालत ने HSVP द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को मनमाना, अनुचित और कानून के खिलाफ बताया है।
जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की खंडपीठ ने 58 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए विवादित मूल्य निर्धारण से जुड़े प्रावधानों को रद्द कर दिया। इसके साथ ही नागरिकों को अनावश्यक रूप से मुकदमेबाजी में उलझाने के लिए HSVP पर 3 लाख रुपये का दंडात्मक जुर्माना भी लगाया गया।
अदालत ने कहा कि जिन मामलों में प्लॉट के आवंटन में देरी पूरी तरह विकास प्राधिकरण की गलती से हुई हो, वहां विस्थापित व्यक्ति आवेदन की तारीख पर लागू दर के अनुसार ही भुगतान करने का हकदार होगा न कि वर्षों बाद बढ़ी हुई आरक्षित कीमत पर। न्यायालय ने दो टूक कहा कि प्रशासनिक देरी का बोझ नागरिकों पर नहीं डाला जा सकता।
मामले में याचिकाकर्ता वे भूस्वामी थे, जिनकी जमीन शहरी विकास योजनाओं के तहत अधिग्रहित की गई थी। 2018 में जारी विज्ञापनों के अनुसार उन्होंने प्लॉट आवंटन के लिए आवेदन कर अग्रिम राशि जमा की थी, लेकिन HSVP ने छह से सात साल तक आवंटन पत्र जारी नहीं किए। जब 2025-26 में आवंटन किए गए, तो उनसे मौजूदा बढ़ी हुई दरों पर भुगतान की मांग की गई।
HSVP की इस दलील को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया कि 2018 के विज्ञापन में कीमत का उल्लेख नहीं था। कोर्ट ने कहा कि कीमत न बताना बाद में ज्यादा राशि वसूलने का आधार नहीं बन सकता। यह निष्पक्षता, पारदर्शिता और कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ है।
हाईकोर्ट ने आवंटन पत्रों के विवादित खंडों को रद्द करते हुए HSVP को निर्देश दिया कि वह 2018 की नीति और पूर्व में दिए गए फैसलों के अनुरूप नई दरें तय करे। साथ ही सरकार को नसीहत दी कि समान परिस्थितियों वाले अन्य विस्थापितों को भी बिना भेदभाव समान लाभ दिया जाए, चाहे उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया हो या नहीं।



