क्या जज यशवंत वर्मा कांड के बाद सरकार इस बार जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था को बदल सकती है ?

देश में इस वक्त 2014 में संसद द्वारा पास राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC ) अधिनियम जिसे 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया उसी की चर्चा है। उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति श्री जगदीश धनकड़ जी ने मंगलवार को इस कानून का जिक्र किया उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्तियों की व्यवस्था को सर्वोच्च न्यायालय के रद्द नहीं किया होता तो “चीजें अलग होती” । इसको एक बार फिर नई व्यवस्था की ओर बढ़ने का संकेत माना जा सकता है।
अगस्त 2014 में संसद ने संविधान में 99 संशोधन अधिनियम 2014 पारित किया और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)अधिनियम 2014 पारित किया। इन कानूनों के पास होने से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र आयोग बनाकर नियुक्ति का अधिकार सरकार को मिल गया।जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “स्वतंत्रता” का हवाला देकर खारिज कर दिया था।
कॉलेजियम व्यवस्था के द्वारा नियुक्त जज यशवंत वर्मा के घर पर मिली नगदी ही इस चर्चा के गरम होने का मुख्य कारण है।इस घटना ने न्यायपालिका के दूसरे पहलू को देश को दिखाया जो कि बहुत ही गंभीर विषय है। सच्चाई का पता लगाने तीन जजों की एक कमेटी बनाई गई है जो मामले की जानकारी इकठ्ठा कर रही है।
क्या है कॉलेजियम व्यवस्था?
देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है।
कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति , पदोन्नति और स्थानांतरण का फैसला करती है।इस व्यवस्था में सरकार और न्यायपालिका कई बार आमने सामने होती रहती है।
उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम व्यवस्था का उल्लेख मूल संविधान में नहीं है और न ही उसके किसी संशोधित प्रावधान में।



