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अल्पसंख्यक मुस्लिम या बहुसंख्यक हिंदू पीड़ित कौन ? 1990 के कश्मीर की ओर बढ़ता पश्चिम बंगाल लाचार केंद्र सरकार।

पश्चिम बंगाल की ममता सरकार की नाकामयाबी का हर्जाना वहां की दलित,गरीब हिंदू जनता को भुगतना पड़ रहा है। उन्मादी कौम ने जिस तरह मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के ऊपर चुन चुन कर तांडव किया उससे पश्चिम बंगाल में हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया। धूलियां के शमशेगंज से पलायन कर हिंदू मालदा में शरणार्थी शिवर में रहने को मजबूर हो गया। ममता सरकार इस गंभीर परिस्थिति को छुट पुट घटनाओं की संज्ञा देकर जेहादियों के हौसलों को बढ़ाने का काम कर रही है। 80% मुस्लिम बाहुल्य मुर्शिदाबाद में 20% हिन्दुओं की दुकानों , घरों को लूटकर उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया गया। इतिहास में देखने पर यह 1990 में हुए कश्मीर की घटना की पुनरावृत्ति की शुरुआत जैसा लग रहा है। पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा , बांग्लादेश में हुई सुनियोजित हिंदू विरोधी हिंसा जैसा लगता है। कुछ दिनों पहले बांग्लादेश के किसी जिहादी द्वारा ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया गया था जिसमें हिंदुस्तान की सीमा को बांग्लादेश के कब्जे में बढ़ता हुआ दिखाया गया था। ये उनकी मानसिकता को दर्शाता है। एक खबर भी सामने आई कि मुर्शिदाबाद हिंसा में 40 से ज्यादा बांग्लादेशी आतंकवादियों का भी हाथ है। (इसकी पुष्टि समाचार भारतवर्ष नहीं करता) यदि ऐसा है तो इसे बहुत ही गंभीरता से लेकर अभी खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाना पड़ेगा नहीं तो पाकिस्तान जैसा एक और देश भारत के लिए नासूर बन जाएगा और पश्चिम बंगाल को कश्मीर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।

घुसपैठ, हिंसा , लूटपाट ,उत्पीड़न हिंदू त्यौहारों को मनाने पर पाबंदी (कोर्ट के दखल के बाद मनाने की परमीशन) फिर चुन चुन कर हिन्दुओं को मारना ये सब एक बड़े पैमाने पर अंतराष्ट्रीय षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहा है। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली मानसिकता , किसी कानून को नहीं मानने और संसद से पास कानून को खुले आम नहीं मानने के वक्तव्य, सड़कों पर बैखौफ होकर उत्पाद मचाना इस माहौल ने ही एक प्रश्न खड़ा कर दिया कि  ” अल्पसंख्यक मुस्लिम या बहुसंख्यक हिंदू इनमें पीड़ित कौन है?”

ममता सरकार द्वारा बांग्लादेश और भारत की सीमा पर फेंसिंग के लिए केंद्र को जमीन नहीं देना भी इतने गंभीर विषय पर उनकी गंभीरता को दर्शाता है । इस विषय पर राजनीति भी चरम पर है, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने जहां मणिपुर को लेकर सरकार पर आए दिन आरोप लगाए , अपने सांसदों की कमेटी बनाकर भेजी परन्तु पश्चिम बंगाल को लेकर चुप्पी साध ली। पार्टियों के नेताओं ने प्रदेश में हो रही हिंसा से वहां के लोगों के प्रति अपनी जवाबदेही से मुंह मोड़ लिया है या ये कहे कि तुष्टिकरण की राजनीति में किसी की हिम्मत सच बोलने की नहीं हो रही है।

उन्मादी कौम के हौसले इतने बड़े हुए है कि वह तृणमूल कांग्रेस के नेता जिनकी कार में भगवान शिव का नाम लिखे होने कारण उन्हें और उनके परिवार के साथ मार पीट कर रही है। पश्चिम बंगाल की हिंसा की आग धीरे धीरे अन्य राज्यों में भी पहुंच रही है, आज ही असम के सिलचर में भी उन्मादी कौम ने अराजकता फैलानी शुरू कर दी। पश्चिम बंगाल में आज फिर हिंसा हुई जिसमें 35 पुलिस वाले गम्भीर रूप से घायल हो गए। केंद्र सरकार को इस विषय पर गंभीरता से रोकने के लिए हर संभव कोशिश कर जनता में कानून का राज्य स्थापित करना चाहिए ताकि संविधान निर्माता भीम राव अम्बेडकर जी  द्वारा संविधान में की गई व्यवस्था को बचाया जा सके।

 

 

 

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