झारखंड/बिहारराज्य

61 किसान उत्पादक कंपनियां पूरी तरह महिलाओं के हाथों में

पटना.
बिहार की नीतीश सरकार के नेतृत्व में जीविका योजना ने महिला सशक्तिकरण की तस्वीर ही बदल दी है। अब महिलाएं सिर्फ घर की जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि खेती, पशुपालन और उत्पादन के क्षेत्र में भी बराबरी से कदम बढ़ा रही हैं और नेतृत्व संभाल रही हैं। ये नीतीश सरकार की ही देने है कि आज राज्य के गांवों में 38 लाख से अधिक महिला किसान आधुनिक खेती के तौर-तरीके अपना चुकी हैं। कृषि विभाग और जीविका के संयुक्त प्रयास से 519 कस्टम हायरिंग सेंटर खोले गए हैं जहां ट्रैक्टर, सीड ड्रिल, पावर टिलर, थ्रेशर समेत कई आधुनिक कृषि उपकरण बेहद सस्ती दर पर किराये पर उपलब्ध हैं। इससे खेती की लागत घटी है और उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

अगर हम पशुपालन और डेयरी के क्षेत्र की बात करें तो  महिलाएं यहां भी पीछे नहीं हैं। 10 लाख से ज्यादा ग्रामीण परिवार बकरी पालन, दुग्ध उत्पादन और छोटे-छोटे डेयरी कारोबार से जुड़ चुके हैं। बीते वित्तीय वर्ष में महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 1.9 करोड़ लीटर नीरा का उत्पादन और बिक्री हुई, जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ महिलाओं को स्थायी आमदनी का जरिया दिया। अररिया में सीमांचल बकरी उत्पादक कंपनी की स्थापना कर 19,956  परिवारों को जोड़ा गया है।

खेती में व्यापारिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए 61 किसान उत्पादक कंपनियां (FPCs) अब पूरी तरह महिलाओं के हाथों में हैं। ये कंपनियां खेत की उपज की खरीद, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और बाजार में बिक्री तक की जिम्मेदारी निभा रही हैं, जिससे किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल रहा है। कृषि विभाग के सहयोग से 11,855 महिलाएं मधुमक्खी पालन कर रही हैं, जिनके द्वारा 3,550.5  मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया गया है।

महिलाओं को जैविक खेती, बीज संरक्षण, फल-सब्जी प्रसंस्करण और कृषि उत्पादों के विविधीकरण का नियमित प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। साथ ही, ‘ड्रोन दीदी’ योजना के तहत महिलाओं को कृषि में तकनीकी और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। इस योजना में महिलाओं को ड्रोन उपकरण खरीदने पर 80% यानी 8 लाख रुपये का अनुदान और बाकी 2 लाख रुपये जीविका समूहों से उपलब्ध कराए जाएंगे। वर्ष 2024-25 और 2025-26 में देशभर के 14,500 महिला समूहों को इससे जोड़ा जाएगा। ग्रामीण महिलाओं की यह बदलती तस्वीर साबित कर रही है कि सही दिशा और सहयोग मिले तो खेत-खलिहान में भी महिलाएं नई इबारत लिख सकती हैं।

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